गुरुवार, 10 नवंबर 2011

मेरी एक कविता" अभिनय "

                                 अभिनय

बच्चा
चिन्दिंयों का बनाता है गोला
खेलता है फुटबाल
और कभी नहीं हारता
अपना मैच

 बच्चा
जा बैठता है
पेड़ के काँधे पर
और उड़ता है आकाश में
दूर-दूर तक

बच्चा
जा खड़ा होता है
ऊँचे टीले पर
और हो जाता है
पेड़ से भी बड़ा

बच्चा
कागज़ के कोरे पन्ने पर
बिखेरता है शब्द
और शब्द
बतियाते हैं उससे

बच्चा
जब-जब बोलता है
खिलौने खेलते हैं
और चिड़िया गाती है

दिन
सब कुछ देखता है
सब कुछ सुनता है
और करता है बच्चे सा अभिनय
बच्चे की ख़ातिर.


                              पथिक तारक





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