मंगलवार, 29 नवंबर 2011

मेरी एक कविता "पेड़ पतंग और बच्चा "

                              पेड़ पतंग और बच्चा

नीले आकाश में
उड़ता है पतंग
डोर बच्चे के हाथ में होती है

बच्चे की स्मृति में
फड़फड़ा कर उड़ती है चिड़िया
और वह जा बैठता है
उसकी पीठ पर

अपनी बाँहों में
पूरा आकाश लपेटे हुए
देखता है वह अपने को
पेड़ के ऊपर उड़ता पतंग

पतंग और पेड़
पेड़ और पतंग
बच्चे की स्मृति में
चढ़-चढ़ कर बोलते हैं.


                           पथिक तारक



गुरुवार, 10 नवंबर 2011

मेरी एक कविता" अभिनय "

                                 अभिनय

बच्चा
चिन्दिंयों का बनाता है गोला
खेलता है फुटबाल
और कभी नहीं हारता
अपना मैच

 बच्चा
जा बैठता है
पेड़ के काँधे पर
और उड़ता है आकाश में
दूर-दूर तक

बच्चा
जा खड़ा होता है
ऊँचे टीले पर
और हो जाता है
पेड़ से भी बड़ा

बच्चा
कागज़ के कोरे पन्ने पर
बिखेरता है शब्द
और शब्द
बतियाते हैं उससे

बच्चा
जब-जब बोलता है
खिलौने खेलते हैं
और चिड़िया गाती है

दिन
सब कुछ देखता है
सब कुछ सुनता है
और करता है बच्चे सा अभिनय
बच्चे की ख़ातिर.


                              पथिक तारक





शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

मेरी एक कविता" चीटियों के बहाने"

                             चीटियों के बहाने

 चीटियाँ
 कतारबध्द एक के पीछे एक
अपने-अपने अण्डों को सीने से लगाये
घर  देहरी,चौखट और दीवार फाँद
उलट कर रख देती है मौसम का पन्ना

चीटियाँ 
मौसम   के आते-जाते
मौसम के जाते- जाते
छेद डालती है पृथ्वी का सीना
और बना लेती है उसमें अपना घर

चीटियाँ  
कभी रोटी के टुकड़े
कभी चॅावल के दाने
तो कभी गुड़ की डली
ढो कर
सहेज लेती है
पूरा का पूरा मौसम

इस मौसम से उस मौसम...
और उस मौसम से उस मौसम तक

चीटियाँ
अपने-अपने  मोर्चे पर
अकेली नहीं होती.

                                 पथिक तारक