सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

मेरी एक कविता "आदमी के रंग के बारे में "

                            आदमी के रंग के बारे में

चित्रकार कहता है
रंग बस उतने ही होते हैं
जितने की चिड़िया ...............
द्ब और आसमान में होते हैं

चित्रकार कहता है
आदमी के भी अपने रंग होते हैं
सबसे अलग,
इतने की बदलते ही रहे
कुछ के तो रंग ङोते ही नहीं

चित्रकार कहता है
हवा का कोई रंग नहीं होता
पेड़ चिड़िया और आदमी.... ही हवा में
अपना रंग छोड़ते हैं

हवा ही है जो आदमी को
समय की खुटी पर टाँग देता है
उसके अपने रंग के हिसाब से.


                                    पथिक तारक

2 टिप्‍पणियां:

  1. हवा ही है जो आदमी को
    समय की खुटी पर टाँग देता है
    उसके अपने रंग के हिसाब से.......उम्‍दा बात

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  2. पथिक जी, कौन सा रंग है जो शेष रह जाता है हवाओ में ?
    क्या आज की हवाओ में वो रंग है?
    रंग के बहाने,समय की पड़ताल करती रचना.
    अच्छा लगता है, अपनों को इस तरह पढना

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