बुधवार, 28 सितंबर 2011

एक कविता "सवाल" जो आपसे भी किये जाते रहेगें...............................

             सवाल


जरूरी है
भाई, पिता उसके और उनके
लिखे हुए को पढूँ,सोचू
सोच कर जवाब दूँ
और इंतजार भी करूँ

यहाँ वे सवाल भी है
जो मेरे लिए तो है
पर मेरे नहीं,
हिदायतें भी है कि-
ये सब जरूरी है
जरूरी है, कोई सवाल न उठाऊँ

यहाँ घर के टूटने का डर है
डर है कि सभी डरे हैं

मैं बड़ा हो गया हूँ
यह जरूरी है कि अब सवालों से डरूँ.


                                                पथिक तारक



रविवार, 25 सितंबर 2011

अपने कवि मित्र एकान्त के लिए एक कविता

                      दोस्त का आगमन


बरसों बाद
घर की ड्योढ़ी पर
आ खड़ा हुआ दोस्त

खिल उठी मेरी बाँहे
दोस्त का ठहाका गूँजा

दोस्त की बातों में शामिल हई
उसकी नौकरी, शहर
शहर के दोस्त
और दोस्तों की बातें

मैंने
अपने बिसरे दिन याद किये

घर की छप्पर ने
दोस्त के कन्धे छू लिए

मुझे मालूम हुआ
शहर में उसके पास
अटारी वाला घर है.

दोस्त ने कोसा
मेरे बौनेपन को
मैंने देखा
वह अब पूरे छ: फुट का है

दोस्त ने याद दिलाया
मेरा कालापन
मैंने पाया
उसका रंग और निखर आया है

पूरे समय  दोस्त
खुरचता रहा
घर के उखड़ते पलस्तर को

मैं चिन्तित हुआ
बरसात को ले कर

दोस्त हँसता रहा
हर पुरानी चीजों को ले कर
मैं केवल शामिल होता गया

गाँव से
जल्दी ऊब कर जाता दोस्त
मुझे एकदम नया लगा

मैंने अपने पुराने दोस्त को
खारिज नहीं किया


                                पथिक तारक











गुरुवार, 22 सितंबर 2011

नदी के बहाने .......... कुछ कविताएँ.




   नदी -  एक


नदी
चढ़ रही होती है
 अपनी बाँहे खोल
ऐसे में डोबता हूँ
 अपने पाँव
नदी में

औरर उसके साथ
रात-रात भर भीगना
याद आता है.




          नदी  -  दो


नदी
जब बह रही होती है
थपथपाती किनारो की पीठ

ऐसे में ठेलता हूँ अपनी डोंगी
उछलती है नदी
और चुम लेती है डोंगी का माथा

हथेलियों के बीच महसुसता ह्ँ नदी
जैसे कि तुम्हारा भीगा चेहरा.


      नदी  -   तीन


नदी
हँसती है रात-रात भर
ओर खेलती है मछलियाँ
जैसे अजन्मा बच्चा
कुलबुलाता है माँ की कोख मे

मैं
डालता हूँ जाल नदी में
छपाक से
सिमटती है नदी
दूर-दूर तक भाग जाती है नदी
खिलखिलाती हुई

जैसे वह.


    नदी   -  चार


नदी
चली है अपने गाँव से
नहीं लौटेगी वह वापस
 फिर कभी

टहलते हुए मैं
देखता हूँ अपने को नदी में
नदी के साथ

नदी ही तो है वह
बहती हुई
मेरे भीतर.


                            पथिक तारक



गुरुवार, 15 सितंबर 2011

एक कविता "मेरा लौटना"

          मेरा लौटना

स्मृतियों में दर्ज है ऐसी तारीखें
मेरे जन्म की,
नौकरी लगने की तारीख,
शादी की
मामा के अचानक चले जाने की तारीख
और जैसे मेरे घर छोड़ने की भी


कुछ घर गाँव है
जिन्हे मैं छोड़ आया
मामी का घर नानी का गाँव
फुफेरे बड़े भाई की कोठरी
और माँ ....  पिता का गाँव

अभी भी बची है कुछ इच्छाएँ
अदद् तरक्की पा लेने की
एक अच्छे पिता बनने की इच्छा
और यह कि
यहीं कहीं हो छोटा सा अपना घर,

अभी बहुतों ने नहीं छोड़ा है साथ
इस शहर की पुरानी मकान मालकिन
जो चली आती है जब भी मन करे
बड़े भाई जैसे मित्र
जो अक्सर मिला देते हैं, मुझे मुझसे
पत्नी है ,जिसे न कहना नहीं आता

और उम्मीद
जिसके होने में है
 मेरा लौटना.

                        पथिक तारक










सोमवार, 12 सितंबर 2011

कविता संग्रह "अपना ही विस्तार" से एक कविता

जिक्र

बात इतनी कि
जंगल का जिक्र हो
और मन हरा हो जाये

बात इतनी कि
पहाड़ का जिक्र हो
ओर आदमी
अपना कद साफ-साफ पहचान सके

बात इतनी कि
नदी का जिक्र हो
तब आदमी डूब -डूब जाये उसमें
और उसका सुखा हृदय हो जाये लबालब

बस बात इतनी ही कि
रस्ते का जिक्र हो
तो आदमी को याद आ जाये
कि उसे जाना कहाँ है.

                       पथिक तारक