नदी - एक
नदी
चढ़ रही होती है
अपनी बाँहे खोल
ऐसे में डोबता हूँ
अपने पाँव
नदी में
औरर उसके साथ
रात-रात भर भीगना
याद आता है.
नदी - दो
नदी
जब बह रही होती है
थपथपाती किनारो की पीठ
ऐसे में ठेलता हूँ अपनी डोंगी
उछलती है नदी
और चुम लेती है डोंगी का माथा
हथेलियों के बीच महसुसता ह्ँ नदी
जैसे कि तुम्हारा भीगा चेहरा.
नदी - तीन
नदी
हँसती है रात-रात भर
ओर खेलती है मछलियाँ
जैसे अजन्मा बच्चा
कुलबुलाता है माँ की कोख मे
मैं
डालता हूँ जाल नदी में
छपाक से
सिमटती है नदी
दूर-दूर तक भाग जाती है नदी
खिलखिलाती हुई
जैसे वह.
नदी - चार
नदी
चली है अपने गाँव से
नहीं लौटेगी वह वापस
फिर कभी
टहलते हुए मैं
देखता हूँ अपने को नदी में
नदी के साथ
नदी ही तो है वह
बहती हुई
मेरे भीतर.
पथिक तारक
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