बुद्ध को खोने का डर
जिसे प्यार कर सकूँ
माँ-पिता, पत्नी-बच्चे
और नौकरी अलावा भी
हवा
जिसके पास रंग है सबके लिए
आवाज़े भी हैं टटोलती हुई
यहाँ से और वहाँ से भी
जैसे कि सबसे नज़दीकी मैं ही हूँ उसके
जब मैं कहता हूँ हवा से प्यार करूँ
तो लगता है यहाँ ठहरे मुझे बहुत देर हो गई है
रात
जिसे बिना किसी के कहे
चाहूँ जितने खाने में बाँटू
पूरा अपने पास रखू या दे दूँ सपनों को
ऐसा करने में पड़ताल कर सकूँगा अंधेरे की
और बता पाउँगा ठीक-ठीक पहचान अपने सपनों की
जब मैं कहता हूँ रात से प्यार करूँ
तो दिन के उजाले का छदम भी टूटता है
और यहीं
अपने पर यकीन न करूँ कहने वाला
कोई नहीं होता
दु:ख
इसमें गुंजाईश है कि-
बाँट सकूँ अपने फेफड़े की हवा
पोर-पोर अगुलियों को भी
और हो जाऊ खाली
गुंजाईश यह कि जाँच सकूँ
जिसे प्यार करता हूँ
जब मैं कहता हूँ दु:ख से प्यार करूँ
तो बुद्ध को खोने का डर नहीं होता...
पथिक तारक