tag:blogger.com,1999:blog-83292013040749858102024-03-13T16:02:48.644+05:30पथिक तारक Pathik Tarak.......अपना ही विस्तारAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-51345525927121637282012-09-10T22:20:00.000+05:302012-09-10T22:20:07.097+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
बाँध-एक</h2>
<div>
नदी यहाँ से बँधेगी</div>
<div>
उस पहाड़ तक</div>
<div>
<br /></div>
<div>
पानी ही पानी होगा</div>
<div>
सिर्फ पानी</div>
<div>
<br /></div>
<div>
जो नदी के साथ-साथ हैं</div>
<div>
अब नदी उनके साथ नहीं होगी</div>
<div>
<br /></div>
<div>
-0-</div>
<div>
<br /></div>
<div>
<h2 style="text-align: left;">
बाँध-दो</h2>
</div>
<div>
यह त्याग भूमि है</div>
<div>
उनके लिए पाठ हो कि</div>
<div>
बच्चों के साथ बढ़े पेड़ो को त्यागें</div>
<div>
नदी को त्यागें</div>
<div>
त्यागें, पुरखों को जो सोये रह गये हैं</div>
<div>
नदी की गोद में</div>
<div>
<br /></div>
<div>
बाज़ार ने तय कर दी है</div>
<div>
बिजली उनकी और... उनकी होगी</div>
<div>
उनके जल से उपजे अन्न किसी और के</div>
<div>
उनके हिस्से की नदी पर बाँध होगा</div>
<div>
और बाँध उनका नहीं</div>
<div>
<br /></div>
<div>
इस खेल में </div>
<div>
यह भी तय है</div>
<div>
नदी पर कुछ भी न बोला जाये</div>
<div>
न ही सुना जाये...</div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
<h2 style="text-align: left;">
पथिक तारक</h2>
<div>
<br /></div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-83468807667151638322012-08-27T16:09:00.003+05:302012-08-27T16:09:19.780+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
<b>बुद्ध को खोने का डर</b></h2>
<div dir="rtl" style="text-align: right;">
<br /></div>
अभी भी बहुत कुछ है<br />
जिसे प्यार कर सकूँ<br />
माँ-पिता, पत्नी-बच्चे<br />
और नौकरी अलावा भी<br />
<br />
हवा<br />
जिसके पास रंग है सबके लिए<br />
<br />
आवाज़े भी हैं टटोलती हुई<br />
यहाँ से और वहाँ से भी<br />
जैसे कि सबसे नज़दीकी मैं ही हूँ उसके<br />
जब मैं कहता हूँ हवा से प्यार करूँ<br />
तो लगता है यहाँ ठहरे मुझे बहुत देर हो गई है<br />
<br />
रात<br />
जिसे बिना किसी के कहे<br />
चाहूँ जितने खाने में बाँटू<br />
पूरा अपने पास रखू या दे दूँ सपनों को<br />
ऐसा करने में पड़ताल कर सकूँगा अंधेरे की<br />
और बता पाउँगा ठीक-ठीक पहचान अपने सपनों की<br />
<br />
जब मैं कहता हूँ रात से प्यार करूँ<br />
तो दिन के उजाले का छदम भी टूटता है<br />
<br />
और यहीं<br />
अपने पर यकीन न करूँ कहने वाला<br />
कोई नहीं होता <br />
<br />
दु:ख<br />
इसमें गुंजाईश है कि-<br />
बाँट सकूँ अपने फेफड़े की हवा<br />
पोर-पोर अगुलियों को भी<br />
और हो जाऊ खाली<br />
गुंजाईश यह कि जाँच सकूँ<br />
जिसे प्यार करता हूँ<br />
<br />
जब मैं कहता हूँ दु:ख से प्यार करूँ <br />
तो बुद्ध को खोने का डर नहीं होता...<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक </b><br />
<br />
<br /></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-40122087148107106802012-08-27T15:18:00.000+05:302012-08-27T16:05:00.205+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
<b>बुद्ध को खोने का डर</b></h2>
<div dir="rtl" style="text-align: right;">
<br /></div>
अभी भी बहुत कुछ है<br />
जिसे प्यार कर सकूँ<br />
माँ-पिता, पत्नी-बच्चे<br />
और नौकरी अलावा भी<br />
<br />
हवा<br />
जिसके पास रंग है सबके लिए<br />
<br />
आवाज़े भी हैं टटोलती हुई<br />
यहाँ से और वहाँ से भी<br />
जैसे कि सबसे नज़दीकी मैं ही हूँ उसके<br />
जब मैं कहता हूँ हवा से प्यार करूँ<br />
तो लगता है यहाँ ठहरे मुझे बहुत देर हो गई है<br />
<br />
रात<br />
जिसे बिना किसी के कहे<br />
चाहूँ जितने खाने में बाँटू<br />
पूरा अपने पास रखू या दे दूँ सपनों को<br />
ऐसा करने में पड़ताल कर सकूँगा अंधेरे की<br />
और बता पाउँगा ठीक-ठीक पहचान अपने सपनों की<br />
<br />
जब मैं कहता हूँ रात से प्यार करूँ<br />
तो दिन के उजाले का छदम भी टूटता है<br />
<br />
और यहीं<br />
अपने पर यकीन न करूँ कहने वाला<br />
कोई नहीं होता <br />
<br />
दु:ख<br />
इसमें गुंजाईश है कि-<br />
बाँट सकूँ अपने फेफड़े की हवा<br />
पोर-पोर अगुलियों को भी<br />
और हो जाऊ खाली<br />
गुंजाईश यह कि जाँच सकूँ<br />
जिसे प्यार करता हूँ<br />
<br />
जब मैं कहता हूँ दु:ख से प्यार करूँ <br />
तो बुद्ध को खोने का डर नहीं होता...<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक </b><br />
<br />
<br /></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-536082648702168532012-03-18T11:14:00.000+05:302012-03-18T11:14:06.079+05:30मेरी कुछ कविताएं आपके लिये...........अस्पताल में" चार कविताएँ"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b>"अस्पताल में" एक</b><br />
<br />
उसका तड़पना पुकारना रोना<br />
फिर चुप्पी<br />
यहीं पत्नी अपनी सांस से<br />
उनकी सांस टटोलती है<br />
और ज्यादा न जी पाने के<br />
उनके से<br />
उनके होने के यकीन को<br />
पास, और पास खीचती पत्नी<br />
एक-एक सांस के बदले उन्हे<br />
उनके साथ बिताये दस- दस बरस लौटाती<br />
एक साथ दो जीवन जीती जाती है<br />
0<br />
<br />
<b>"अस्पताल में" दो</b><br />
<br />
उनकी आवाज़ है कि <br />
दूर से आ रही है थरथराती हुई<br />
उनके हाथ उठते हैं<br />
तो बस बुलाने के लिए<br />
उनकी सोच इधर- उधर से होकर<br />
अटक जाती है पत्नी के माथे पर<br />
पत्नी किसे आवाज़ दे<br />
किसे बुलाये<br />
सोचे तो भी क्या ?<br />
वह तो बस<br />
वहीं से निकल कर<br />
वहीं लौटना जानती है.<br />
0<br />
<br />
<b>"अस्पताल में" तीन</b><br />
<br />
<br />
उनकी देह अभी भी है<br />
आपरेशन टेबल पर<br />
<br />
डाक्टर जूझ रहे हैं<br />
उनके गुर्दे,आँत लहू और सांस से<br />
<br />
<br />
दरवाज़े के पार<br />
पत्नी के काँधे पर अभी भी<br />
उन्ही का हाथ है<br />
और यह भी कि<br />
नहीं, बिलकुल नहीं .<br />
0<br />
<br />
<b>"अस्पताल में" चार</b><br />
<br />
वह अभी बेहोश है<br />
बंधुओं और वे जो अपने कह जाते हैं के<br />
ज़रुरी काम निकल आये हैं<br />
<br />
वह बेहोशी में<br />
पत्नी से कहते रहे हैं<br />
कुछ भी माँगना मत इनसे ,हिम्मत तक भी <br />
वे नहीं दे सकेगें<br />
मेरे पास जो है कुछ के लिए कम होगा<br />
<br />
पत्नी के पास यहाँ कोई नहीं है<br />
जिसे बताये कि<br />
उसने कभी हिसाब रखा ही नहीं<br />
0<br />
<br />
<b> पथिक तारक </b><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-76501524311934400472012-02-27T20:10:00.000+05:302012-02-27T20:10:04.700+05:30मेरी एक कविता "आदमी के रंग के बारे में "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> आदमी के रंग के बारे में</b><br />
<br />
चित्रकार कहता है <br />
रंग बस उतने ही होते हैं<br />
जितने की चिड़िया ...............<br />
द्ब और आसमान में होते हैं<br />
<br />
चित्रकार कहता है<br />
आदमी के भी अपने रंग होते हैं <br />
सबसे अलग,<br />
इतने की बदलते ही रहे<br />
कुछ के तो रंग ङोते ही नहीं<br />
<br />
चित्रकार कहता है<br />
हवा का कोई रंग नहीं होता <br />
पेड़ चिड़िया और आदमी.... ही हवा में<br />
अपना रंग छोड़ते हैं<br />
<br />
हवा ही है जो आदमी को<br />
समय की खुटी पर टाँग देता है<br />
उसके अपने रंग के हिसाब से.<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-2245270339536629612012-01-08T15:24:00.000+05:302012-01-08T15:24:42.818+05:30मेरी एक कविता "नर्मदा का प्रेम "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">1989 की एक शाम या कहूँ पूरी की पूरी रात ओंकारेशवर में नर्मदा के घाट को अपना सिरहाना बना कर नर्मदा को ,उसकी सिसकियों , उसकी रुदन को सुनता रहा.तब मैं मालवा के लोक गायको के दल के साथ था जो पूरी रात घाट पर नर्मदा को गाते रहे........ दरअसल एक पौरानिक किवदंति ज़ेहन में बार-बार आ रही थी, जो नर्मदा और सोन के प्रेम ,विछोह और रुठने को लेकर है.अमरकंटक में दोनों नदी एक जगह से निकालकर जिस तरह एक दूसरे के विपरीत दिशाओं में ही नहीं बहती हुई बल्कि दो अलग महासागरों में समा जाती है .अमरकंटक में जहाँ सोन नदी 350 फीट नीचे छलाँग लगा कर बिना मुड़कर पीछे देखे आगे बढ़ जाती है लेकिन नर्मदा ठिठक- ठिठक आगे बढ़ती है, अमरकंटक से आगे जबलपुर गौरी घाट, भेड़ाघाट, होसंगाबाद और ओंकारेशवर ....और ... और भी जगहों पर नर्मदा को देखकर लगता है जैसे थोड़ी रुक कर सोन के आने का इंतज़ार करती है और फिर सिसकति हुई आगे बढ़ जाती है .यह प्रेम ही है ... है न..<br />
नर्मदा के इस प्रेम को आप सभी से बाँटते हुए मेरी ये कविता .......<br />
<br />
<b> नर्मदा का प्रेम</b><br />
<br />
सोन को याद करते हुए<br />
छू लिया मैंने<br />
नर्मदा का जल<br />
लगा नर्मदा ठिठक सी गयी<br />
<br />
दोहराते हुए<br />
सोन की पुकार<br />
ओ नर्मदे.....नर्मदे....<br />
डुबकी लगायी मैने<br />
नर्मदा के जल में<br />
सिमटती सी<br />
मेरे अंगों को भिगोती<br />
दूर-दूर तक फैल गयी नर्मदा<br />
<br />
बना कर सिरहाना<br />
नर्मदा के घाट को<br />
देखता रहा मैं नदी को<br />
नर्मदा सिसकती ,रोती रही रात-रात भर<br />
<br />
सोन....ओ सोन.......... <br />
मैं बड़ी.........<br />
बहुत बड़ी हो गई हूँ मैं .<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-3937024208781752332011-12-13T21:09:00.000+05:302011-12-13T21:09:07.969+05:30मेरी एक कविता "जंगल के बारे में "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> जंगल के बारे में</b><br />
जंगल के बारे में<br />
बस मुझे इतना ही पता है<br />
वहाँ पेड़ होते हैं<br />
हरियाली होती है<br />
मानसून अपना रास्ता नहीं भूलते<br />
जंगल के होने से<br />
और वह सब<br />
जो मैनें किताबों में देखी है<br />
<br />
जंगल कहीं नहीं आता<br />
हमारे रास्ते पर<br />
गाँव से शहर आने तक<br />
किताब इस बारे में<br />
ज़्यादा कुछ नहीं बोलती<br />
<br />
जिस-जिस नें जंगल को लिखा<br />
सिर्फ़ लिखा<br />
पढ़ा नहीं.....<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-37681064545410152052011-12-08T21:45:00.000+05:302011-12-08T21:45:41.855+05:30मेरी एक कविता "खिलौनो से "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> खिलौनो से</b><br />
<br />
बच्चे के पास <br />
चार खि़लौने है<br />
एक मोटर गाड़ी,एक पतंग<br />
बैलगाड़ी और बंदर<br />
<br />
बच्चा बताता है-<br />
मोटर गाड़ी ऐसी चलेगी <br />
और यहाँ पर टकरा कर उलट जायेगी<br />
<br />
बच्चा पतंग उड़ाता हुआ बताता है<br />
ऐसी उड़ती है पतंग<br />
यहाँ जगह नहीं बची है इसलिए<br />
उलझ जायेंगे इसके धागे<br />
<br />
बच्चा अपनी बैलगाड़ी दौड़ाता निकल जाता है<br />
लौट कर कहता है<br />
जितना चाहो दौड़ाओ<br />
पेट्रोल नही चाहिए इसे<br />
<br />
बच्चा बताता है<br />
यह बंदर है<br />
चाबी भरो तो नॅाचता है<br />
इसके घर जो नहीं बचे अब .<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-51066365685845311292011-11-29T21:07:00.001+05:302011-11-29T21:08:51.764+05:30मेरी एक कविता "पेड़ पतंग और बच्चा "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> पेड़ पतंग और बच्चा </b><br />
<br />
नीले आकाश में<br />
उड़ता है पतंग<br />
डोर बच्चे के हाथ में होती है<br />
<br />
बच्चे की स्मृति में<br />
फड़फड़ा कर उड़ती है चिड़िया<br />
और वह जा बैठता है<br />
उसकी पीठ पर<br />
<br />
अपनी बाँहों में<br />
पूरा आकाश लपेटे हुए<br />
देखता है वह अपने को <br />
पेड़ के ऊपर उड़ता पतंग<br />
<br />
पतंग और पेड़<br />
पेड़ और पतंग<br />
बच्चे की स्मृति में<br />
चढ़-चढ़ कर बोलते हैं.<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक </b><br />
<br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-9841423319114364532011-11-10T19:43:00.000+05:302011-11-10T19:43:30.939+05:30मेरी एक कविता" अभिनय "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> अभिनय</b><br />
<br />
बच्चा<br />
चिन्दिंयों का बनाता है गोला<br />
खेलता है फुटबाल<br />
और कभी नहीं हारता<br />
अपना मैच<br />
<br />
बच्चा<br />
जा बैठता है <br />
पेड़ के काँधे पर<br />
और उड़ता है आकाश में<br />
दूर-दूर तक<br />
<br />
बच्चा<br />
जा खड़ा होता है <br />
ऊँचे टीले पर<br />
और हो जाता है<br />
पेड़ से भी बड़ा<br />
<br />
बच्चा<br />
कागज़ के कोरे पन्ने पर <br />
बिखेरता है शब्द<br />
और शब्द<br />
बतियाते हैं उससे<br />
<br />
बच्चा<br />
जब-जब बोलता है <br />
खिलौने खेलते हैं<br />
और चिड़िया गाती है<br />
<br />
दिन<br />
सब कुछ देखता है<br />
सब कुछ सुनता है<br />
और करता है बच्चे सा अभिनय<br />
बच्चे की ख़ातिर.<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-69368842720658923632011-11-04T21:59:00.000+05:302011-11-04T21:59:13.023+05:30मेरी एक कविता" चीटियों के बहाने"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> चीटियों के बहाने</b><br />
<br />
चीटियाँ <br />
कतारबध्द एक के पीछे एक <br />
अपने-अपने अण्डों को सीने से लगाये<br />
घर देहरी,चौखट और दीवार फाँद<br />
उलट कर रख देती है मौसम का पन्ना<br />
<br />
चीटियाँ <br />
मौसम के आते-जाते<br />
मौसम के जाते- जाते<br />
छेद डालती है पृथ्वी का सीना<br />
और बना लेती है उसमें अपना घर<br />
<br />
चीटियाँ <br />
कभी रोटी के टुकड़े<br />
कभी चॅावल के दाने<br />
तो कभी गुड़ की डली <br />
ढो कर<br />
सहेज लेती है<br />
पूरा का पूरा मौसम<br />
<br />
इस मौसम से उस मौसम...<br />
और उस मौसम से उस मौसम तक<br />
<br />
चीटियाँ<br />
अपने-अपने मोर्चे पर<br />
अकेली नहीं होती.<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-36023059644163687952011-10-21T18:57:00.000+05:302011-10-21T18:57:57.103+05:30एक कविता - "मछली"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> मछली</b><br />
<br />
मछुवारा <br />
तालाब को देख कर बताता है<br />
इसमें इतनी मछली है<br />
और वह इस जाल से फँसेगी<br />
<br />
मछली क्या करेगी ?<br />
जाल मछुवारे का<br />
मछली भी उसकी पाली हुई<br />
<br />
मैं केवल<br />
मछुवारे को बदल सकता हूँ.<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-6274829452043959432011-10-20T18:53:00.000+05:302011-10-20T18:53:34.029+05:30एक कविता "पेड़ से बात करो"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> पेड़ से बात करो</b><br />
पेड़ को छुओ <br />
इसमे भी झुरझुरी होती है<br />
काँपते हैं इसके पत्ते<br />
<br />
ड़गाल पर चढ़ो<br />
भर-भरा कर उड़ जायेगी चिड़ियाँ सारी<br />
और वीरान हो जायेगी इसकी दुनिया<br />
<br />
एक पत्ता तोड़ो <br />
मौसम उलट देगा अपना पन्ना<br />
और तुम्हारे हाथ सूखे पत्ते लगेंगे<br />
<br />
पेड़ से बात करो......<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b></div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-28000038209753240932011-10-17T21:06:00.000+05:302011-10-17T21:06:27.095+05:30एक कविता "चाँद के बारे में"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> चाँद के बारे में</b><br />
<br />
मैं<br />
रात का <br />
काला<br />
उदास चेहरा<br />
<br />
चाँद को<br />
अच्छा नहीं लगा<br />
<br />
वह<br />
डूब गया...<br />
<br />
<b> पथिक तारक </b><br />
<br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-58411214729941808902011-10-08T16:30:00.004+05:302011-10-12T20:06:51.369+05:30मेरी एक कविता "परिचय सम्मेलन से लौटते हुए"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> परिचय सम्मेलन से लौटते हुए</b><br />
<br />
जैसे बाज़ार<br />
वैसी ही हड़बड़ी <br />
जैसे चिड़िया घर के पाँखी<br />
वैसे ही उनके पंख कटे-कटे से<br />
<br />
सब कुछ जैसे उड़ता हुआ<br />
जैसे सवालात्<br />
वैसे ही लोग अपनी-अपनी आँखों समेत<br />
<br />
जैसी उम्र<br />
वैसी ही रंगा-पुता मन<br />
जैसे सुबह-सुबह का स्वप्न था यह सब<br />
<br />
सोचती है वह<br />
परिचय सम्मेलन से लौटते हुए<br />
<br />
सोचती है वह<br />
कितना कुछ बदल गया<br />
सल्लो से हो गई संध्या<br />
जैसे बिट्टू से बेटी<br />
<br />
उसकी फ्राक साड़ी हो गई<br />
फड़फड़ा कर उड़ती हुई<br />
जैसे माँ का उत्सुक चेहरा<br />
और पिता का नींद हो<br />
या गुड़िया की हँसी<br />
जो खत्म हो जाती है चाबी के साथ<br />
<br />
परिचय सम्मेलन से लौटते हुए<br />
सोचती है वह<br />
घर देहरी के बाहर भी लोग हैं<br />
बाज़ार में बैठे हुए<br />
<br />
और ....और भी बहुत कुछ है<br />
स्वप्नों के होते हुए भी<br />
परिचय के इस समुद्र में..<br />
गुम होता हुआ....<br />
<br />
जैसे वह............<br />
जैसे उनका परिचय...... <br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-89829663606072633192011-09-28T08:08:00.002+05:302011-09-29T20:10:51.009+05:30एक कविता "सवाल" जो आपसे भी किये जाते रहेगें...............................<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> सवाल</b><br />
<br />
<br />
जरूरी है<br />
भाई, पिता उसके और उनके<br />
लिखे हुए को पढूँ,सोचू<br />
सोच कर जवाब दूँ<br />
और इंतजार भी करूँ<br />
<br />
यहाँ वे सवाल भी है<br />
जो मेरे लिए तो है<br />
पर मेरे नहीं,<br />
हिदायतें भी है कि-<br />
ये सब जरूरी है<br />
जरूरी है, कोई सवाल न उठाऊँ<br />
<br />
यहाँ घर के टूटने का डर है <br />
डर है कि सभी डरे हैं<br />
<br />
मैं बड़ा हो गया हूँ<br />
यह जरूरी है कि अब सवालों से डरूँ.<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-52553121811947743352011-09-25T10:23:00.000+05:302011-09-25T17:03:23.708+05:30अपने कवि मित्र एकान्त के लिए एक कविता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> दोस्त का आगमन</b><br />
<br />
<br />
बरसों बाद<br />
घर की ड्योढ़ी पर<br />
आ खड़ा हुआ दोस्त<br />
<br />
खिल उठी मेरी बाँहे<br />
दोस्त का ठहाका गूँजा<br />
<br />
दोस्त की बातों में शामिल हई<br />
उसकी नौकरी, शहर<br />
शहर के दोस्त<br />
और दोस्तों की बातें<br />
<br />
मैंने<br />
अपने बिसरे दिन याद किये<br />
<br />
घर की छप्पर ने <br />
दोस्त के कन्धे छू लिए<br />
<br />
मुझे मालूम हुआ<br />
शहर में उसके पास<br />
अटारी वाला घर है.<br />
<br />
दोस्त ने कोसा<br />
मेरे बौनेपन को<br />
मैंने देखा<br />
वह अब पूरे छ: फुट का है<br />
<br />
दोस्त ने याद दिलाया <br />
मेरा कालापन<br />
मैंने पाया <br />
उसका रंग और निखर आया है<br />
<br />
पूरे समय दोस्त<br />
खुरचता रहा <br />
घर के उखड़ते पलस्तर को<br />
<br />
मैं चिन्तित हुआ<br />
बरसात को ले कर<br />
<br />
दोस्त हँसता रहा <br />
हर पुरानी चीजों को ले कर<br />
मैं केवल शामिल होता गया<br />
<br />
गाँव से<br />
जल्दी ऊब कर जाता दोस्त<br />
मुझे एकदम नया लगा<br />
<br />
मैंने अपने पुराने दोस्त को<br />
खारिज नहीं किया<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-72452277235912681272011-09-22T19:58:00.000+05:302011-09-25T14:58:23.608+05:30नदी के बहाने .......... कुछ कविताएँ.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><u><b><br />
</b></u><br />
<br />
<b> नदी -</b><b> </b><b>एक</b><br />
<br />
<br />
नदी <br />
चढ़ रही होती है<br />
अपनी बाँहे खोल<br />
ऐसे में डोबता हूँ<br />
अपने पाँव<br />
नदी में<br />
<br />
औरर उसके साथ<br />
रात-रात भर भीगना<br />
याद आता है.<br />
<br />
<br />
<u><b> </b></u><br />
<br />
<b> नदी </b> -<b> दो</b><br />
<br />
<br />
नदी<br />
जब बह रही होती है<br />
थपथपाती किनारो की पीठ<br />
<br />
ऐसे में ठेलता हूँ अपनी डोंगी <br />
उछलती है नदी<br />
और चुम लेती है डोंगी का माथा<br />
<br />
हथेलियों के बीच महसुसता ह्ँ नदी<br />
जैसे कि तुम्हारा भीगा चेहरा.<br />
<br />
<br />
<b> नदी </b> - <b>तीन</b><br />
<br />
<br />
नदी<br />
हँसती है रात-रात भर<br />
ओर खेलती है मछलियाँ<br />
जैसे अजन्मा बच्चा<br />
कुलबुलाता है माँ की कोख मे<br />
<br />
मैं<br />
डालता हूँ जाल नदी में<br />
छपाक से<br />
सिमटती है नदी<br />
दूर-दूर तक भाग जाती है नदी<br />
खिलखिलाती हुई<br />
<br />
जैसे वह.<br />
<br />
<br />
<b> नदी </b> - <b> चार</b><br />
<br />
<br />
नदी<br />
चली है अपने गाँव से<br />
नहीं लौटेगी वह वापस<br />
फिर कभी<br />
<br />
टहलते हुए मैं<br />
देखता हूँ अपने को नदी में<br />
नदी के साथ<br />
<br />
नदी ही तो है वह<br />
बहती हुई<br />
मेरे भीतर.<br />
<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-47907777833007277262011-09-15T21:32:00.000+05:302011-09-25T15:00:53.325+05:30एक कविता "मेरा लौटना"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> मेरा लौटना</b><br />
<br />
स्मृतियों में दर्ज है ऐसी तारीखें<br />
मेरे जन्म की,<br />
नौकरी लगने की तारीख, <br />
शादी की<br />
मामा के अचानक चले जाने की तारीख <br />
और जैसे मेरे घर छोड़ने की भी<br />
<br />
<br />
कुछ घर गाँव है<br />
जिन्हे मैं छोड़ आया<br />
मामी का घर नानी का गाँव<br />
फुफेरे बड़े भाई की कोठरी<br />
और माँ .... पिता का गाँव<br />
<br />
अभी भी बची है कुछ इच्छाएँ <br />
अदद् तरक्की पा लेने की<br />
एक अच्छे पिता बनने की इच्छा<br />
और यह कि<br />
यहीं कहीं हो छोटा सा अपना घर,<br />
<br />
अभी बहुतों ने नहीं छोड़ा है साथ <br />
इस शहर की पुरानी मकान मालकिन<br />
जो चली आती है जब भी मन करे<br />
बड़े भाई जैसे मित्र<br />
जो अक्सर मिला देते हैं, मुझे मुझसे<br />
पत्नी है ,जिसे न कहना नहीं आता<br />
<br />
और उम्मीद<br />
जिसके होने में है<br />
मेरा लौटना.<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8329201304074985810.post-26014340786384656592011-09-12T19:48:00.000+05:302011-09-25T17:06:34.030+05:30कविता संग्रह "अपना ही विस्तार" से एक कविता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><b>जिक्र</b><br />
<br />
बात इतनी कि<br />
जंगल का जिक्र हो<br />
और मन हरा हो जाये<br />
<br />
बात इतनी कि <br />
पहाड़ का जिक्र हो<br />
ओर आदमी <br />
अपना कद साफ-साफ पहचान सके<br />
<br />
बात इतनी कि<br />
नदी का जिक्र हो<br />
तब आदमी डूब -डूब जाये उसमें<br />
और उसका सुखा हृदय हो जाये लबालब<br />
<br />
बस बात इतनी ही कि<br />
रस्ते का जिक्र हो<br />
तो आदमी को याद आ जाये<br />
कि उसे जाना कहाँ है.<br />
<br />
<b> पथिक तारक</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<b><br />
</b><br />
<br />
</div>Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/06736696777679100046noreply@blogger.com1